Tuesday 12 December 2017

The Revival

निरपराध की अभिव्यक्ति

                                                                                       -  श्रुति
 


धुंध सी निकलती एक रोशनी
नए उजाले की ओर मुझे अग्रसर करती है
क्या पता किस किनारे,किस प्रयास में सफलता के राज़ खोलती
अंधेरो से तपता मेरा यह बदन न जाने किस जोश में जीता है
अधरों पर आई मुसकराहट दिल को छलनी कर देता है
क्योंकि इस मुस्कुराहट में कटाक्ष एवं टिप्पणियां का समावेश होता है
संसार कहता,अरे मूर्ख क्यों जी रही है?
अपनी अस्मिता खो कर
पर मेरे एक- एक रोएं से पूछो
वह कहता है - "मैंने खोई है अपनी अस्मिता, मैंने ?" 
या उन्होंने, जिनके पास अब इंसान होने का भी तमगा नहीं
मेरा क्या कुसूर 
सिर्फ इतना की मैं एक लड़की हूँ,
नहीं  !
उनका कुसूर है,कि वे इंसानियत को बचा सके
अपने माँ के दूध के क़र्ज़ को चुका न सके
आज भाग रहा है विश्व सारा,सिर्फ उसी की भूख में ,क्या है? 
जिस्म का एक लोथड़ा
जिसमे कोई प्राण नहीं , 
कोई प्रेमालाप नहीं 
तन भी टूटा,मन भी टूटा, लेकिन मेरा संकल्प नहीं
उठ खड़ी हो दुर्गा बन तू , 
तेरी जननी तुझे पुकार रही
ग्लानि तूझको क्यों सुशोभित ? 
जब तेरा अपराध नहीं
वह रे दुनिया! मुझको सिखाती क्या करो क्या न करो
क्यों नहीं बेटों को सिखाती,
कर कोई अपराध नहीं
बातें करते हो बड़ी जब अपने पुरुषार्थ की
कहाँ जाता है वह पौरुष ?
सामने जब नारी खड़ी
न शक्तिहीन है,
न अबला 
न दया की पात्र है
नारी वह है,जो तेरी जन्मदाता है
किस-किस रूप में तुमको उसने सींचा और सराहा है
न करो समर्पण सर्वस्व अपना,
मांगती नहीं अधिकार वह
सिर्फ चाहती है अपना स्वाभिमान वह
मैं खड़ी हूँ , आज न मैं अबला हूँ, न दया की पात्र
मैं ईश्वर की सुन्दर रचना
रचूँगी सुन्दर संसार,
देख लेना है नर-व्याघ्र !
कर दूँगी तेरा संहार , जननी हूँ तो काली भी हूँ

भद्रकाली कपाली भी हूँ , आज फिर मैं उठ खड़ी हूँ
लेने को अपना आहार !!
लेने को अपना आहार !!

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3 comments:

  1. Beautiful poem👌👌👌👌👌

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  2. It has a very deep meaning....Beautifully done

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  3. Thank you to all my readers for all your support and love.

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In the loving memory of school life.....

We never noticed how time passed, From rubbing the blackboard and feeling for it proud, To counting the photographs for reading a lesson out...